भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती-८ / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:30, 18 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>धरती घुमाती है हमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड में हम तो पडे़ रहते हैं …)
धरती घुमाती है
हमें
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में
हम तो
पडे़ रहते हैं
धरती पर
मानों
गोदी में हों
मां की !
फ़िर भी
भ्रमित हो
करते रहते हैं
कोशिश
चलने की
जब कि
मालूम है हमें
धरती से अलग
दूर
नहीं जा सकते
हम
परन्तु कब अघाते हैं
हिलाते हैं पग
जानता है जग !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"