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प्रीत-४ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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हम नें भी की
तुम नें भी की
       प्रीत ।

हम नें भी पाली
तुम नें भी पाली
        रीत ।
परन्तु तुम
न छोड़ सके
        रीत ।
और हम से
न छूटी
        प्रीत ।

आज हमारे पास है
प्रीत ही प्रीत
परन्तु तुम पाले हुए हो
केवल
रीत की प्रीत !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"