भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत-7 / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:16, 18 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> जब कभी तुम गीत मे…)
जब कभी तुम गीत मेरा गुनगुनाओगे
और कुछ पाओ ना पाओ दर्द पाओगे
पत्थरों से रास्तों की, फूल सी हैं मंजिलें
जब कभी इन रास्तों पर डगमगाओगे, और कुछ…………
छोड़कर पीपल की छाँव, छोड़कर तुम अपना गाँव
जब कभी आकाश में तारे सजाओगे, और कुछ……………
आँख के इन आँसुओं में जीत के मोती छुपे
जब कभी तुम आँख के मोती छिपाओगे, और कुछ……………
प्रेम का तो दर्द से रिश्ता, पुराना है
जब कभी तुम ऐसा रिश्ता तोड़ जाओगे, और कुछ……………
1992