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आश्वस्त / रमेश कौशिक

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मेरा क्या है
गिरते-पड़ते
रोते-गाते, हँसते-चिल्लाते
काँटों में बिंधते
रास्ता बनाते
किसी तरह इस जंगल से
निकल जाऊँगा|

लेकिन उनका क्या होगा
जो मेरे बाद आएँगें
मेरे बनाए रास्ते पर
कैक्टस की औलादें
उनका रास्ता रोकने को
फिर उग आएँगी|

ठीक है
जो मैंने किया
उसे हर आने वाला दुहाराएगा
और किसी तरह इस जंगल के पार
वह भी निकल जाएगा|