भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्तर्विरोध / अजित कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:33, 20 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=घोंघे / अजित कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घोंघा है कीड़ा एक
गिजगिजा, गंदा, गीला, घिनौना ।
शंख है उसी का घर-
शुभ्र, सुदृढ़, मंगलमय, पवित्र ।

जीवन वहीं
जहाँ परस्पर विरोध ।