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सूरज का फ़व्वारा-1 / इदरीस मौहम्मद तैयब

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मैं सुबह ही, कोठरी की छत पर बनी
खिड़की से आती
सूरज की किरणों को देखता हूँ
किरणें जो खिड़की की सलाखों से
मुस्कराती हुई आती हैं
सूरज अभी भी बच्चा है
अभी ऊपर आसमान तक नहीं पहुँचा है
जिससे की रोशनी मुझ तक उतर सके
रोशनी की किरणों के साथ
अपनी शिनाख़्त बनाने के अलावा
मैं कर भी क्या सकता हूँ
वक़्त गुज़रने तक ।

रचनाकाल : 26 जनवरी 1979