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सूरज का फ़व्वारा-4 / इदरीस मौहम्मद तैयब

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सूरज का फ़व्वारा चुपके से खिसक लेता है
मेरे शरीर को सुख के चटखारों में छोड़
मेरी कोठरी सपने के सामने
अपनी दीवारों को नंगा कर देती है

लेकिन मेरे भीतर तुम्हारी मौजूदगी
सब ख़ुशियों का रास्ता है
जो किसी क़ैद से नहीं डरता
तुम तक पहुँचने के लिए बनता है मेरा वाहन

मैं स्वप्न तट की ओर भागता हुआ
तुम्हारे बारे में पूछता हूँ
समुद्र दबा लेता है अपनी हँसी
जब वह तुम्हें यों
सन्नाटे में खिसक कर
अपने हाथों से मेरी आँखों को
ढँकते हुए देखता है

मुझे मालूम है तुम एक ऐसा
सूरज हो जो कभी नहीं ढलता
और
तन्हाई में एक क़ैदी तब्दील हो जाता है दो क़ैदियों में
पहरेदार होने के बावजूद ।


रचनाकाल : 26 जनवरी 1979