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कविता-6 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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रास्‍ते में जब हमारी आँखें मिलती हैं
मैं सोचता हूँ मुझे उसे कुछ कहना था
पर वह गुज़र जाती है
और हर लहर पर बारंबार टकराती
एक नौका की तरह
मुझे कंपाती रहती है-
वह बात जो
मुझे उससे कहनी थी
यह पतझड़ में बादलों की अंतहीन तलाश
की तरह है या संध्‍या में खिले फूलों-से
सूर्यास्‍त में अपनी खुशबू खोना है

जुगनू की तरह मेरे हृदय में
भुकभुकाती रहती है
निराशा के झुटपुटे में अपना अर्थ तलाशती-
वह बात जो मुझे उसे बतानी थी ।

अंग्रेज़ी से अनुवाद - कुमार मुकुल