भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब क़ैदी छूटते हैं-2 / इदरीस मौहम्मद तैयब
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:53, 22 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इदरीस मौहम्मद तैयब |संग्रह=घर का पता / इदरीस मौह…)
सपने के इस पल में
सीना खुलता है
जिससे अंदर का पक्षी अपनी जंज़ीर तोड़ सके
और फिर सावधानी से एक के बाद दूसरी छलाँग लगाते हुए
आराम से इस पिंज़रे के
पहरेदारों को धोखा दे कर उड़ जाता है ।
रचनाकाल : 22 फ़रवरी 1979
अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस