भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब क़ैदी छूटते हैं-3 / इदरीस मौहम्मद तैयब
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:56, 22 जुलाई 2010 का अवतरण
तुम्हारा चेहरा धँधलाने लगता है
भीतर तुम्हारी मौजूदगी दर्द से तनी है
तुमसे मिलने की आतुरता कराहती है
क्योंकि आँसुओं की बाढ़
अंदर काँप रही है
आँसू जो अब कभी बहेंगे नहीं
क्योंकि कुछ समय पहले
कड़वाहट के जायके से वे पथरा चुके हैं ।
रचनाकाल : 22 फ़रवरी 1979
अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस