Last modified on 25 जुलाई 2010, at 00:00

साथ चलते हैं काँपते साए / अनिरुद्ध सिन्हा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 25 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> साथ चलते हैं…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साथ चलते हैं काँपते साये
ऐसे रिश्तों को क्या कहा जाए

टूट जाने दो उस खिलौने को
बेहिसी के करीब जो आए

फिक्र, सपने, सुकूँ, कसम, वादे
मेरे हिस्से में आप क्या लाए

मफ़लिसी के अजीब हाथों से
सच का दामन पकड़ नहीं पाए

जिस्म महफूज हैं, उसे कह दो
ज़ुल्म जज़्बात पर नहीं ढाए ।