Last modified on 28 जुलाई 2010, at 01:32

ओ मेरे विशेषण / भारत भूषण अग्रवाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:32, 28 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल |संग्रह=उतना वह सूरज है / भारत …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हर विशेषण विशेष्य को कमज़ोर करता है
क्योंकि वह उसे अपना मुहताज बना लेता है
इसीलिए तो, मेरे विशेषण !
तुम मुझसे जीत गए हो
इसीलिए तो तुम हर बार मुँह फ़ाड़ कर हँसते हो
जब मैं तुमसे अपना सिर टकराता हूँ ।
कितनी बड़ी मूर्खता थी यह सोचना कि तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं हूँ
जब कि मैं जो कुछ हूँ, हो सकता हूँ, या होऊँगा
वह उतना ही जितना तुम्हारे बिना हूँ ।
तुम मैं नहीं हो यह ठीक है
तो फिर तुम हो ही क्या
महज़ एक डर, एक संकोच, एक आदत
जिससे मैं चाहे छूट न भी पाऊँ
पर जो मैं नहीं हूँ ।