भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेहरा तुम्हारा / भारत भूषण अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:39, 28 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल |संग्रह=उतना वह सूरज है / भारत …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब नहीं दिखता है चेहरा तुम्हारा !
सुन्दर वे सुधियाँ मैं सारी जगा चुका,
पर इस पर बैठा है
बड़ा कड़ा पहरा तुम्हारा ।

डूब गई सुधि,
तो उसकी चेतना भी डूब जाए
ओ--रे मन !
प्यार कब बनेगा इतना गहरा तुम्हारा ?

रचनाकाल : 08 अप्रैल 1966