भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उधेड़बुन / अजित कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:34, 2 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=घोंघे / अजित कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> …)
वह जड़ है या चेतन ?
उधेड़बुन में पड़ा था मैं
इस तथ्य से अपरिचित कि
इनके अलावा एक और भी है कोटि :
जीवित पत्थर !
फिर क्यों न मैं कहता,
धड़क रही बिटिया से-
राम, राम !
सालिगराम !