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थपेड़े / अजित कुमार

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शंख को
लहरों के थपेड़े मिलते
जितने ही तेज़ और तीखे,
उतना ही सख़्त
बन जाता है खोल ।

आपकी बला से ।

आप तो लेटे रहिए
थुलथुली काया में
समेटे
लिजलिजा मन ।