सपनों का क्या करो
कहाँ तक मरो
इनके पीछे
कहाँ-कहाँ तक
खिंचो
इनके खींचे
कई बार लगता है
लो
यह आ गया हाथ में
आँख खोलता हूँ
तो बदल जाता है दिन
रात में !
सपनों का क्या करो
कहाँ तक मरो
इनके पीछे
कहाँ-कहाँ तक
खिंचो
इनके खींचे
कई बार लगता है
लो
यह आ गया हाथ में
आँख खोलता हूँ
तो बदल जाता है दिन
रात में !