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मुक्ति का आह्वान / अशोक लव

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बंद कर लिए गए दरवाज़े
बंद कर ली गयीं खिड़कियाँ
खो बैठा ताज़गी
बंदी पवन

उगने लगे जाले
पलने लगे मकड़े
बुनते चले गए विषैले तार
उलझने लगे पावँ
चूसने लगे रक्त
फूलने लगे मकड़े

खोलने लगे दरवाजे
खोलने लगे खिड़कियाँ
ना खुले तो
इन्हें तोड़ना होगा

बंदी पवन की मुक्ति
आवश्यक होती है
अन्यथा घुट जायेग दम
पीढ़ियों का