भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गहरा ही सही/ हरीश भादानी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 6 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>गहरा ही सही अथाह रेत के गर्भ में फूटता छलछलाता मिल ही तो जाता है …)
गहरा ही सही
अथाह रेत के गर्भ में
फूटता छलछलाता
मिल ही तो जाता है
पानी
अटूट पानी.....
मार्च’ 82