भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 6 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>नदी ओ रेत की नदी       थम, जरा सी थम देख तो ले मुझे हमशक्ल तो नहीं ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी
ओ रेत की नदी
      थम, जरा सी थम
देख तो ले मुझे
हमशक्ल तो नहीं
हम आहैग हूं ही मैं,
एक दरिया में
समाना है मुझे भी
तेरी तरह मुझको भी होना है,
एक तनमन का विराट
फिर अकेले
कहाँ भागे जा रही हो रेत की नदी।
            
जून’ 82