Last modified on 6 अगस्त 2010, at 21:35

हाथ ही तो हैं / हरीश भादानी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 6 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>हाथ ही तो हैं छानते हैं सुबह से शाम         आखी रात पर्वत दिशा धरत…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाथ ही तो हैं
छानते हैं
सुबह से शाम
        आखी रात
पर्वत दिशा
धरती समुन्दर
अतलान्त को भी

मेरी देह से जुड़े
ये क्या हैं फिर
        तरेड़ा हो नहीं गया है
जिनसे
आंख भर का ही
अंधेरा.....
            
फरवरी’ 82