साँसों की अँगुली थामे जो / हरीश भादानी
साँसों की अँगुली थामे जो
आए क्वांरी साध तो
गीतों से माँग संवार दूँ
मैं रागों से सिंगार दूँ
संकेतों की मनुहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो.....
गीतों के आखर को सुर्खी
दी है तीखी धूप ने
रागों के स्वर को आकुलता
दी लहरों के रूप ने
तट सा मौनी सपना कोई
चाहे मेरा साथ तो
पीड़ा-सा उसे उभार दूँ
सौ आँसू उस पर वार दूँ
आशाओं के उपहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो.....
मेरे गीतों को ढलुआनें
दी झुकते आकाश ने
रागों को बढ़ना सिखलाया
वनपाखी की प्यास ने
शूलों से बतियाते कोई
आए मुझ तक पाँव तो
मैं बाँहों को विस्तार दूँ
मैं दो का भेद बिसार दूँ
परछाई सा आकार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो.....
मेरे गीतों को गदराया
सावन की सौगात ने
रागों को गूँजें दे दी हैं
मेघों की बारात ने
रिमझिम बरखा जैसी कोई
बरसे मुझ पर याद तो
मैं मन की जलन उतार दूँ
मैं धुँधले पंथ निखार दूँ
मैं सारा सफर गुजार दूँ
सांसों की अँगुली थामे जो.....
मेरे गीतों में सागर की
अनदेखी गहराई है
मेरी रागों के सरगम में
मौजों की तरुणाई है
सूनेपन से सिहरी-सिहरी
बहके कोई नाव तो
मैं मलयाई पतवार दूँ
मैं हर क्षण फेनिल प्यार दूँ
मैं कोई तीर उतार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो
आए क्वांरी साध तो
गीतों से माँग संवार दूँ
मैं रागों से सिंगार दूँ
संकेतों की मनुहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो