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आ, सवाल चुगें, धूपाएं.....आ !/ हरीश भादानी
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आ, सवाल चुगें, धूपाएं.....आ !
दीवारों पर आ बैठी
यादों की सीलन
नीचे से ऊपर तक
रंग खरोंचे
कुतर न जाए
माटी का मरमरी कलेजा
आ, सवाल चुगें, धूपाएं.....आ !
आँख लगाए है
पिछवाड़े पर सन्नाटा
जोड़-जोड़ पर नेज़े खोभे
सेंधन लग जाए
हरफ़ों के घर में
आ, फ़सीलों से गूंजें.....पहराएं !
आ, सवाल चुगें, धूपाएं.....आ !
पसर गया है
बीच सड़क भूखा चौराहा
उझक-उझक मुँह खोले
भरम निपोरे
निगल न जाए
यह तलाश की कामधेनु को
आ, वामन होलें, चल जाएं.....आ !
आ, सवाल चुगें, अगियाएं.....आ !