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डंडा / विजय कुमार पंत

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हरे भरे पेड़
छाया के जनक
फलों के जन्मदाता
धरती के पोषक
शांत , सुंदर , शीतल
मधुकर ,
दधीचि की तरह लुटाने को तत्पर

और हम
गर्व और अहम् में डूबे
संवेदनहीन
विनाश ब्रह्म
लगाते हैं अपने पापी हाथ
और बना देते हैं उसे डंडा
एक डंडा
रुखा सा
सुखा सा
जो एक माध्यम बन करता रहता है अत्याचार
हमारे ही हाथों से
हम पर बार-बार
जिसकी कभी भी नहीं सुनी हमने चीत्कार
जो जब भी टकराता है
बहुत रोता और पछताता है
और पूछता है ईश्वर से "हे देव !
मुझसे आप ने क्या क्या करवाया
किसलिए आपने मुझे बनाया

और फिर देखता हूँ कि
उसकी नियति से अनजान एक उड़ती चिड़िया ने
धरती पर एक नया बीज
"गिराया "