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चोरी की रपट / काका हाथरसी

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घूरे खाँ के घर हुई चोरी आधी रात ।

कपड़े-बर्तन ले गए छोड़े तवा-परात ॥

छोड़े तवा-परात, सुबह थाने को धाए ।

क्या-क्या चीज़ गई हैं सबके नाम लिखाए ॥

आँसू भर कर कहा – महरबानी यह कीजै ।

तवा-परात बचे हैं इनको भी लिख लीजै ॥

कोतवाल कहने लगा करके आँखें लाल ।

उसको क्यों लिखवा रहा नहीं गया जो माल ॥

नहीं गया जो माल, मियाँ मिमियाकर बोला ।

मैंने अपना दिल हुज़ूर के आगे खोला ॥

मुंशी जी का इंतजाम किस तरह करूँगा ।

तवा-परात बेचकर 'रपट लिखाई' दूँगा ॥