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मौन ही मुखर है / विष्णु प्रभाकर

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धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम
लो आ गया एक और नया वर्ष
ढोल बजाता, रक्त बहाता
हिंसक भेड़ियों के साथ
ये वे ही भेड़िए हैं
डर कर जिनसे
की थी गुहार आदिमानव ने
अपने प्रभु से-