भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विवश वृक्ष / अशोक लव
Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 23 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=अशोक लव |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान / अशोक …)
नदी की लहरों ने
अपने स्पर्शों से
किनारे खड़े वृक्ष में भर दिए
प्राण,
पुनर्जीवित हो उठा वृक्ष
हरे हो गए पत्ते
चहकने लगी टहनियाँ
लहरों की प्रतीक्षा में
अपलक निहारता है दूर-दूर तक
मौन तपस्वी सा,
संबल बनी नदी
बदल ना ले मार्ग अपना
सोच सोच
कांप कांप उठता है वृक्ष
उछलती कूदती आती हैं नदी की लहरें
छूकर भाग जाती हैं नदी की लहरें
वृक्ष भी चल पाता
तो चलता दूर तक नदी के संग
विवश वृक्ष केवल सुनता रहता है
लौटती नदी की पदचापें