भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे भीतर एक नदी / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
Ankita (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 30 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद |संग्रह=आदमी नहीं हैं / ओम पुरोह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक नदी
रजस्वला
जो मेरे
बहुत गहरे
बहती है
कहती है
मैं
रचना चाहती हूं
एक हरियल संसार
लगातार
लेकिन
मेरे मार्ग में
बहुत अवरोध हैं
तू अबोध है
नही पहचान पा रहा
उनका और मेरा
तुम में होना
यह रोना
मेरा और तुम्हारा
लगातार
रचा जा रहा है
और
एक होना
होने को तरस रहा है।

मैं
बस
उस नदी का स्वर
कनपटियों पर महसूसता हूं
और स्वयं को
एक भ्रूणहत्या का
दोषी मानता हूं।

मेरे भीतर
आज भी
नदी मे ज्वार है।