जब-जब भी
हलक के पिछवाड़े मरेगा आदमी
उसकी अगाड़ी
जन्म लेगी कविता
जो चीख-चीख
सिंहनाद करेगी
कि, अब कुछ सहन नही होगा
घिसटती ज़िंदगी को
सर्प की सी योनी से
मुक्त होना होगा
और तब संत्रासों का
फंदा काट
तन कर चलने का
स्वाद बताएगी कविता।
अपने-अपने हिस्से के
घावों को धो
सदी को मवाद मुक्त कर
वर्ण शब्दो की
वाक्य कविता की
कविता जन-जन की
पंक्ति में आ कर बैठेगी
और फिर कविता
महाभारत के बाद की
ठंडी बयार होगी
सच पूछिए
वह कविता
सदाबहार होगी।