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भीतर का दीया-एक / मुकेश मानस
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एक अनन्त रेगिस्तान में
तपना पड़ता है
एक अथाह तिमिर सागर
लाँघना पड़ता है
एक पाषाणी सभ्यता में
पिसना पड़ता है
अगर इंसान भूल जाये
अपने भीतर का दीया जलाना
2008