भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टूटने पर / रित्सुको कवाबाता
Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रित्सुको कवाबाता }} Category:जापानी भाषा <poem> फटाक ! …)
|
फटाक !
मेरी प्रिय कांच की चायदानी
प्योनी और हरे पत्तों के साथ
टूटी पड़ी है !
मात्र एक दंपत्ति के मतलब की
पुरानी यादें गत दस वर्षों की
आनंद लिया हर दिन इसकी खूब्सूरती का
थामे इसे अपने हाथों में,
दुःख है इसके खोने का .
ऐसी बढ़िया चायदानी
नहीं मिलेगी फिर ,
लेकिन खोजनी पड़ेगी नई,
टूटना किसी चीज़ का बुरा नहीं है इतना
यह अवसर है
नए के आने का !
अनुवादक: मंजुला सक्सेना