भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा चेहरा / रित्सुको कवाबाता
Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रित्सुको कवाबाता }} Category:जापानी भाषा <poem> हर सु…)
|
हर सुबह
मैं देखती हूँ दर्पण में अपना चेहरा
कैसा विलक्षण है यह !
काले रेशमी बाल, छाये सर पर
दो आँखे,झरोखे आत्मा के
पलकें,खुलने -बंद होने को मुक्त
घनी भोंये आँखों का सटीक ढक्कन
ऊंची उठी नाक बीन्चों- बीन्च
मूंह जैसे पंखुड़ी गुलाब की
कान सजे दोनों ओर !
आँखे कहती हैं -यह दीखता है सुन्दर
नाक कहती है -यह गंध है अद्भुत
जीभ कहती है -यह स्वाद है बढ़िया
कान कहते हैं -यह आवाज़ है मधुर !
बाईबिल कहती है कि-
इश्वर ने बनाया मानव को
अपने जैसा .
कितनी बढ़िया रचना है
मेरा चेहरा !
अनुवादक: मंजुला सक्सेना