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कवि/ गोबिन्द प्रसाद
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दर्द
तुम्हारा था
शब्द भी
तुम्हारे थे
और
गान; भी तुम्हारे थे
लेकिन प्रतिध्वनियों से गूँजता
आकाश भी
क्या तुम्हारा था कवि