भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौट गया सच / गोबिन्द प्रसाद

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 10 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सच होंठों के बहुत पास
आकर
दबे पाँव लौट गया

वह होना चाहता था
स्कूल से लौटते हुए बच्चों के बदन में
थकी हुई लय में
घिसटती निर्विकार धुन

वह हम जैसे छूछे
माँ-बाप के सामने
होठों के कोने में
पुतली और पलकों के बीच
किसी अदृश्य नदी की तरह या फिर
उनींदे सपने की तरह
सहम कर ठिठक गया है
सच
अब यहाँ से कभी नहीं जाएगा
वह हमारे परिवार में सीवन का टाँका बन
सुब्हा से मिलती हुई अँधेरी रातों में
झमकता रहता है
माँ की झाईं सा; रात-दिन!