भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्मराग-एक / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:34, 10 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द…)
सब ने सब का खाया
अपना अपना गुन गाया
कोई किसी को भाया
ना कोई पेड़
ना कोई साया
ना कोई गया ना कोई आया
कैसा दीन
कैसी दुनिया
कैसा जगत है कैसी माया!