भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लिखना तो चाहा था / नईम
Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:47, 11 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |संग्रह=पहला दिन मेरे आषाढ़ का / नईम }} {{KKCatNavgeet}} <p…)
लिखना तो चाहा था
टेसूवन
बौराए आम,
लेकिन लिख बैठा मैं
झुलसे तन
बदली के घाम।
निर्वसना शाखाएँ, पीले पत्ते, तिनके-
परखचे उड़े जाते कर्फ्यू वाले दिन के
लिखनी तो चाही थी-
गंध पवन,
वासंती शाम,
लेकिन लिख बैठा मैं
द्रोह दलन
जन के पथ बाम।
घाटे के बजट और फागुन दिन चढ़े भाव,
हमले पर हमले, पक्षों के बौने बचाव;
लिखनी तो चाही जय यात्राएँ,
नए तीर्थ धाम,
लेकिन लिख गई मुझसे
सुविधाएँ-
बस्ती बदनाम।