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लिखना तो चाहा था / नईम

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लिखना तो चाहा था
टेसूवन
बौराए आम,
लेकिन लिख बैठा मैं
               झुलसे तन
               बदली के घाम।

निर्वसना शाखाएँ, पीले पत्ते, तिनके-
परखचे उड़े जाते कर्फ्यू वाले दिन के
लिखनी तो चाही थी-
गंध पवन,
               वासंती शाम,
              लेकिन लिख बैठा मैं
               द्रोह दलन
               जन के पथ बाम।

घाटे के बजट और फागुन दिन चढ़े भाव,
हमले पर हमले, पक्षों के बौने बचाव;
लिखनी तो चाही जय यात्राएँ,
               नए तीर्थ धाम,
               लेकिन लिख गई मुझसे
               सुविधाएँ-
               बस्ती बदनाम।