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मैं जल रहा हूँ / महेंद्रसिंह जाडेजा

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मुझे बुझाओ
मै जल रहा हूँ ।

मेरा रोम-रोम जल रहा है ।
मुझे मेरी हड्डी,चमड़ी,मांस,
खून की गंध आ रही है ।

मुझे बुझाओ।

समय के जंगल में
लग गई है आग
और चारों तरफ़ है अंधेरा,
और चारों तरफ़ है धुआँ,
और चारों तरफ़ है
हाहाकार की प्रतिध्वनि ।

मुझे बुझाओ
मैं जल रहा हूँ....


मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति