भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यदि तुम्हारे / पंकज चौधरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:07, 15 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> यदि तुम्हारे कान…)
यदि तुम्हारे कान बंद कर दिए जाएँ तो?
तो तुम नहीं सुनोगे
यदि तुम्हारी आँखें बंद की दी जाएँ तो?
तो तुम नहीं देखोगे
और यदि तुम्हारे
मुँह पर जाबी लगा दी जाए तो?
तो तुम्हारा शेर बनना लाजिमी है!