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तिरे इश्क की इंतहा चाहता हूँ / इक़बाल

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तिरे इश्क़ की इंतहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी <ref>पर्दादारी हटाने का वादा</ref>
कोई बात सब्र-आज़मा <ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> चाहता हूँ

वो जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऎ अहले-महफ़िल
चिराग़े-सहर<ref>भोर का दीया</ref> हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब<ref>असभ्य</ref> हूँ सज़ा चाहता हूँ

शब्दार्थ
<references/>