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एक आरज़ू / इक़बाल

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दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या-रब
क्या लुत्फ़<ref>मज़ा</ref> अंजुमन<ref>सभा</ref> का जब दिल ही बुझ गया हो

शोरिश<ref>हंगामा</ref> से भागता हूँ दिल ढूँढता है मेरा
ऐसा सुकून<ref>चैन</ref> जिसपर तक़दीर<ref>भाग्य</ref> भी फ़िदा<ref>कृपालु</ref> हो

मरता हूँ ख़ामुशी पर यह आरज़ू है मेरी
दामन में कोह<ref>पहाड़ की गोद में</ref> के इक छोटा-सा झोंपड़ा हो

हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े<ref>हरियाली</ref> का हो बिछौना
शरमाए जिससे जल्वत<ref>दृश्य</ref>ख़िलवत<ref>एकांत</ref> में वो अदा हो

मानूस<ref>परिचित</ref> इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल
नन्हे-से उसके दिल में खटका<ref>भय</ref> न कुछ मिरा हो

आग़ोश<ref>अंकपाश में</ref> में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा<ref>हरियाली</ref>
फिर-फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो

पानी को छू रही हो झुक-झुक के गुल की टहनी
जैसे हसीन<ref>सुन्दरी</ref> कोई आईना देखता हो

फूलों को आए जिस दम शबनम<ref>ओस</ref> वज़ू<ref>नमाज़ से पहले हाथ-मुँह,पैर धोना</ref> कराने
रोना मेरा वज़ू हो, नाला<ref>फ़रियाद</ref> मिरी दुआ हो

हर दर्दमंद दिल को रोना मेरा रुला दे
बेहोश जो पड़े हैं, शायद उन्हें‍ रुला दे