ऐसे अमर कवियों को संबोधित / ओम भारती
नमस्ते कवि जी, कैसे हैं आप ?
बेहद गंभीर संयत शांत हैं इन दिनों में भी
उपलब्धि आपकी महती यह
बधाई हो
आपको क्रोध नहीं आता है
रूदन से रोतले हो उठते हैं आप
करूणार्द्र हो उठता है आप पर पाठक
सचमुच बधाई हो
समयविद्ध नहीं, समयसिद्ध आप हैं
समय के पार हैं, परे हैं
प्रतिकृत नहीं होते अपने समय से
भड़कते नहीं आप
कड़कते, फड़कते या तड़कते भी नहीं
किसी पर
विदेशी मुद्रा वाले अनिवासी भारतीय
बज़ट, बुश, बारूद, मुद्रा-स्फीति-दर
मंदी, मँहगाई और शोषण की नीति पर
कुरीति पर अनीति पर
बेईमान दलालों, देशतोड़ू लालों पर
किसी भी खलनायक पर
अकर्मण्य नायक पर
नहीं आप देखे गए नाराज़
कभी नहीं आपने ऊँची की आवाज़
कवि जी क्या आपने कभी ख़ुद से पूछा
आपको क्यों नहीं आता है गुस्सा
क्यों नहीं आपमें वह
मूल मानवीय गुण या कमज़ोरी
आक्रोश, रोष या ताप के समीप का
कोई भी लक्षण
क्यों नहीं महाभाग
आपमें वो जन-सुलभ छोटी सी आग ?
और आग ही नहीं है कवि
तो पानी भी कहाँ होगा
शेष तीन तत्व भी मनुष्य के
क्यों ढूँढ़े जायेंगे आपमें
इस अधम मर्त्य की बधाई स्वीकारें
कि आप अमर होंगे अवश्य ही।
(1991)