Last modified on 22 सितम्बर 2010, at 08:41

नुसरत की आँखें / उत्‍तमराव क्षीरसागर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:41, 22 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर }} {{KKCatKavita‎}} <poem> समझ नहीं आता व…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

समझ नहीं आता
वार करती हैं / या प्‍यार करती हैं
फिर भी बहुत अच्‍छी हैं
नुसरत की आँखें

राह देख चलती है इनसे
जल्‍द भाँप लेती है ख़तरा
भीतर तक झाँक लेती है अक्‍सर
सबको टोहती रहती
लेकिन
उसको खुल के बिखरने नहीं देतीं
नुसरत की आँखें

बकरियों की तरह फिरती
जाने कहाँ-कहाँ दीख जाती
हँसी-चुहल से बलखाती
कमसिन नादां
भरी दुपहरी जेठ की
परछाइ को रौंदती 'जाती है कहाँ'
अक्‍सर पूछती हैं
मछली-सी तड़पती
नुसरत की आँखें