भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नीली चिड़िया / पूनम तुषामड़
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:32, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम तुषामड़ |संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषाम…)
नीली सुंदर चिड़िया
निकली है
पंख फड़फड़ाकर
अपने घोंसले से बाहर
खुले नीले
आसमान में उड़ने को ।
अचानक...
सामने से आते
गिद्धों को देखकर
सहम गई है
नीली चिड़िया ।
नीली चिड़िया
इंतज़ार करती है
वापस घोंसले में आकर
और सोचती है-
आख़िर
कब तक रहेगा
यह असुरक्षा बोध?
कब मिलेगा
हमें भी
स्वतंत्र उड़ने को
यह स्वच्छ
नीला आसमान?