भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थरथराता रहा / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:12, 24 मई 2007 का अवतरण
रचनाकार: शमशेर बहादुर सिंह
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
{एक विचित्र प्रेम अनुभूति}
थरथराता रहा जैसे बेंत
मेरा काय...कितनी देर तक
आपादमस्तक
एक पीपल-पात मैं थरथर ।
कांपती काया शिराओं-भरी
झन-झन
देर तक बजती रही
और समस्त वातावरण
मानो झंझावात
ऎसा क्षण वह आपात
स्थिति का
('प्रतिनिधि कविताएं' नामक संग्रह से)