Last modified on 24 सितम्बर 2010, at 20:17

मर्क़जे-हर निगाह बन जाओ / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:17, 24 सितम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मर्क़जे-हर निगाह बन जाओ
दोस्तो ख़िज़्रे-राह बन जाओ

थाम लो हाथ बे सहारों का
उन की जाए-पनाह बन जाओ

जिस में आ कर मिलें सभी राहें
तुम वही शाहराह बन जाओ

झूट से तोड़ कर सभी रिश्ते
एक सच्चे गवाह बन जाओ

बे-हिसी से न वासिता रखना
आह बन जाओ वाह बन जाओ

हक़ परस्ती के, हक़ शनासी६ के
दिल से तुम खै़र-ख्व़ाह बन जाओ

सब से बढ़ कर चमक दमक रक्खो
तुम सितारों में माह बन जाओ

जो सभी दुश्मनों पे भारी पड़े
हिन्द की वो सिपाह बन जाओ

दर पे साइल करे जो आ के सदा
उस घड़ी बे-पनाह बन जाओ

कुछ न आये नज़र बजुज़ मह्बूब
एक आशिक़ की चाह बन जाओ

एक दुनिया तुम्हें सलाम करे
सच की आमाजगाह बन जाओ