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सड़क-एक / ओम पुरोहित ‘कागद’

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यहां से वहां
दूर-दूर तक
सड़क ही सड़क
कहीं ओर न छोर
परन्तु
सड़क हर ओर
जो नहीं ठहरती
किसी शहर में
निकल जाती है
गली मोहल्ले
चौक चौराहे
गाहे बगाहे
और
पहुंच कर
दूसरे शहर में
निकल कर
फिर-फिर से
किसी शहर से
दम तोड़ देती है सड़क
हारी थकी
प्यासी हिरनी सी
किसी गांव के किनारे।