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गुलाम मोहम्मद शेख / परिचय

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गुलाम मोहम्मद शेख

संस्कार-नगरी बड़ौदा गुजरात में कला का केन्द्र रही है । संगीत, चित्र-कला, साहित्य, शिल्प-कला -इन सभी क्षेत्र में ऐसे सुविख्यात नाम बड़ौदा से जुड़े रहे हैं, जिन्होंने न केवल भारत में, बल्कि विश्व के फलक पर बड़ौदा को एक गौरवपूर्ण स्थान दिलाया है ।

ऐसा ही एक नाम है श्री गुलाम महम्मद शेख का, जिन्होंने बड़ौदा को विश्व के कला-जगत में एक पहचान दी है, ऐसा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । बड़ौदा के कला-जगत में शेख साहब के नाम से विख्यात श्री शेख की विशेषता यह है कि वे एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ख्याति-प्राप्त चित्रकार तो हैं ही, गुजराती साहित्य भी उनके नाम के उल्लेख के बिना अधूरा माना जाता है ।

1937 में सुरेन्द्रनगर में जन्मे श्री शेख 1955 में बड़ौदा आए थे । बड़ौदा की एम० एस० युनिवर्सिटी तथा लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट के विद्यार्थी रहे । देश-विदेश में अनेक वर्कशॉपों में उन्होंने हिस्सा लिया । एम० एस० युनिवर्सिटी में आर्ट हिस्ट्री के शिक्षक एवं पेंटिंग में प्रोफेसर के रूप में उनका योगदान अमूल्य माना जाता है । वे आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ शिकागो में विज़िटिंग फैकल्टी मेम्बर रहे तथा दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी उन्होंने विज़िटिंग फेलो के रूप में सेवाएँ दीं ।

श्री शेख ने 1996 में विधान भवन, भोपाल में म्यूरल ‘ट्री ऑफ लाइफ’ पेंट किया । देश-विदेश में उनकी कई प्रदर्शनियाँ हुईं तथा कई आर्ट गेलेरीज़ में उनके चित्र आज भी शोभायमान हैं । कला जगत में एक शिक्षाविद के रूप में भी उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है । उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे हैं तथा कितनी ही पत्रिकाओं के वे संपादक भी रहे हैं । वे ललित कला अकादमी की विभिन्न गतिविधियों से भी सक्रिय रूप से जुड़े रहे ।

श्री गुलाम मोहम्मद शेख साहब को 1983 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया तथा 2002 में मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें कालिदास सम्मान भी प्रदान किया । साथ ही गुजरात सरकार द्वारा 1998-99 में रविशंकर रावल अवार्ड, 1962 में ललित कला अकादमी का नेशनल अवार्ड तथा 1961 में गुजरात राज्य ललित कला अकादमी ने भी अवार्ड देकर उन्हें सम्मानित किया ।

साहित्य के प्रति श्री शेख साहब की अभिरूचि बचपन से ही रही है। स्कूल के ज़माने से वे कविता और कहानियाँ लिखते रहे हैं । तब से ले कर दशकों तक वे गुजरात की सम-सामयिक साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े रहे । लगभग 1955 से उनकी छंदहीन कविताएँ गुजराती साहित्यिक पत्रिकाओं विश्व मानव, क्षितिज, कुमार, संस्कृति, मिलाप आदि में प्रकाशित होती रहीं । 1968 में लंदन से लौटने के बाद निबंध शृंखला ‘घरे जातां’ उहापोह, एतद् गद्यपर्व आदि में प्रकाशित हुई । उनके कला संबंधी विभिन्न निबंध भी इन पत्रिकाओं में नियमित छपते रहे हैं ।

1974 में उनका कविता-संग्रह ‘अथवा’ उनके रेखांकनों सहित प्रकाशित हुआ । उनकी कविताओं के हिन्दी, मराठी एवं अंग्रेज़ी में अनुवाद भी हुए हैं और साक्षात्कार, वागर्थ (हिन्दी), सत्यकथा (मराठी) तथा Another India, Indian Poetry today आदि में प्रकाशित हुए हैं ।

श्री शेख साहब से मिलने पर एक ओर उनके धीर-गंभीर चिंतनशील व्यक्तित्व की आभा से हम प्रभावित हो जाते हैं, वहीं उनकी संवेदनशील एवं स्नेहपूर्ण प्रकृति हमारे मन को छू जाती है । प्रधान कार्यालय में कार्यरत वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) श्रीमती पारूल मशर द्वारा हिन्दी में अनुवादित उनकी कुछ गुजराती कविताओं को हम पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं ।