भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संस्कार नगरी / गुलाम मोहम्मद शेख

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:25, 29 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र शाह |संग्रह= }} Category: गुजराती भाषा {{KKCatKavit…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ताड़ के पत्तों को चीर कर
पूर्णिमा का चाँद
म्यूज़ियम की नक़्शीदार छत पर
आ खड़ा होता है ।

पदच्युत राजवी से
उसके फीके पड़े चेहरे को देखने की
किसी को फ़ुरसत नहीं है ।

म्यूज़ियम के तहखाने में बंद
व्हेल के अस्थिपंजर की तरह
उसे जिज्ञासा भरी दृष्टि से देखने को भी
कोई तैयार नहीं है ।
 
भेड़ जैसी नगरी
उजाले को सूँघती हुई
अंधेरे की ओर चल देती है ।
बौखलाया हुआ चाँद
म्यूज़ियम की चोटी पर चढ़ बैठता है ।

शिखर पर थाली की तरह डगमगाते
उसके हास्यास्पद चेहरे को देख कोई हँसता नहीं है ।
गंभीर मुख-मुद्रा वाले सज्जन एवं नारियाँ
बंद दरवाज़ों के पीछे, म्यूज़ियम की ममी की पट्टियाँ खोल कर
खाने बैठते हैं

तब सूअर सा भूखा चाँद
रास्ते पर जीभ घिसता हुआ
नथुने फुलाता हुआ
यहाँ-वहाँ भटकता रहता है ।
                          

मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : पारुल मशर