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शहनाई गूंज रही / जयकृष्ण राय तुषार

जाने क्या होता
इन प्यार भरी बातों में?
रिश्ते बन जाते हैं
चन्द मुलाकातों में ।

मौसम कोई हो
हम अनायास गाते हैं,
बंजारे होठ मधुर
बाँसुरी बजाते हैं,
मेंहदी के रंग उभर आते हैं
हाथों में ।

खुली-खुली आँखों में
स्वप्न सगुन होते हैं,
हम मन के क्षितिजों पर
इन्द्रधनुष बोते हैं,
चन्द्रमा उगाते हम
अँधियारी रातों में ।

सुधियों में हम तेरी
भूख प्यास भूले हैं
पतझर में भी जाने
क्यो पलाश फूले हैं
शहनाई गूँज रही
मंडपों कनातों में।