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कवि-कविता / अमरजीत कौंके
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बहुत बेचैन करती है
कविता
कुलबुलाती
आँतों को चीर कर बाहर आती
नींद में
शोर मचाती
सपनों को तार-तार करती
अँधेरे में बार-बार जगती
आधी रात
जगा देती है कविता
जब सारी दुनिया
बेसुध सोती
तब भी
जागता है कवि
कविता
र
च
ता.... ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा