फिर मिलें / अमरजीत कौंके
चलो मिलें फिर कभी
बहुत देर से इन्तज़ार कर रही है धरती
बहुत देर से तरस रहा है आकाश
सड़कों के किनारे इन्तज़ार करते वृक्ष
चलो फिर इनके नीचे खड़े होकर
कोई इकरार करें हम
बहुत देर से इन्तज़ार करता
बहता हुआ पानी
अपने भीतर हम दोनों का अक्स
फिर से फ़्रेम करना चाहता
इन्तजार करते पुलों से गुजरते राही
जिनकी परवाह किये बिना
देर तक नदी किनारे
बैठे रहे हम
चलो फिर मिलें कभी
अभी भी वह सड़कें
हमारी पदचापों का
इन्तज़ार करती
पवन हमारी आवाज़
सुनने को तरस रहा
तुम्हारी वह खनखनाती हँसी सुनने को
तरस रहा वातावरण
वे लोग
जिन्होंने हमें इक्ट्ठा देखकर
कितने बवाल मचाए
कितने तूफ़ान उठाए
जिन्होंने हमें जुदा करने में
अहम रोल निभाए
देखो ! वे फिर
हमारे मिलन का
इन्तजार करते
आओ मिलें फिर कभी ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा